बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
सांख्य दर्शन में द्वैतवाद क्या है?
अथवा
सांख्य दर्शन में विकासवाद का सिद्धान्त बताइए।
अथवा
सांख्य दर्शन में वस्तुवाद क्या है?
अथवा
सांख्य दर्शन में अनीश्वरवाद क्या है?
अथवा
सिद्ध कीजिये कि सांख्य दर्शन अनीश्वरवादी है।
अथवा
सिद्ध कीजिए कि सांख्य दर्शन द्वैतवादी है।
अथवा
सांख्य विकासवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
अथवा
सांख्य दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
अथवा
सांख्य के विकासवाद की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिये।
उत्तर -
सांख्य दर्शन से सभी दर्शन किसी न किसी रूप में प्रभावित होते हैं। सांख्य दर्शन की समीक्षा करने के लिए निम्नलिखित चरणों पर ध्यान देना आवश्यक है -
(1) सांख्य दर्शन में द्वैतवाद सांख्य दर्शन द्वैतवादी है। द्वैतवाद के अन्तर्गत संसार के मूल तत्वों की संख्या दो बताई जाती है। सांख्य दर्शन के अनुसार दो मौलिक तत्व होते हैं -
1. प्रकृति, 2. पुरुष।
प्रकृति और पुरुष दोनों स्वतन्त्र तथा निरपेक्ष हैं इसलिए मौलिक सत्ताओं को दो रूपों में पाने के कारण ही सांख्य दर्शन को द्वैतवादी दर्शन कहा जाता है। प्रकृति और पुरुष दोनों का स्वभाव भिन्न-भिन्न है। प्रकृति जड़ पदार्थ है और अचेतन है। प्रकृति में सत्, रज तथा तम तीन गुण पाये जाते हैं इसी कारण प्रकृति में परिवर्तन होता है। प्रकृति का स्वरूप गतिशील है तथा इसमें चेतना नहीं होती इसलिए कुछ व्यक्ति इसे अंधी (blind) कहते हैं।
पुरुष एक चेतनशील पदार्थ है। इसका स्वरूप शुद्ध चेतना है, यह निष्क्रिय है। अतः इसमें विकार नहीं पाया जाता है। पुरुष में गति नहीं है, वह स्थिर है, पुरुष आत्मा है, पुरुष की चेतना से प्रकृति प्रभावित होती है जिससे प्रकृति का विकास होता है। पुरुष की संख्या अनेक हैं जितने जीव हैं उतनी ही आत्मा या पुरुष हैं। सांख्य दर्शन में दोनों की सत्ता अलग-अलग है इसी कारण यह द्वैतवादी है। सांख्य दर्शन के अनुसार, प्रकृति संसार का मूल कारण है। प्रकृति से बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ, तन्मात्र तथा महाभूतों का विकास होता है। इनकी कुल संख्या 24 है अर्थात् चौबीस तरह के पदार्थ होते हैं। इससे अनेकवाद की झलक प्राप्त होती है। प्रकृति इस रूप में अनेकवाद का प्रतीक बन जाती है। पुरुष भी एक नहीं अनेक हैं अतः यह भी अनेकवाद है। सांख्य दर्शनशास्त्रियों के अनुसार, जब पुरुष निर्विकार है उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता तो वह प्रकृति के साथ किस प्रकार सहयोग देता है, पुरुष की चेतना से बुद्धि पर क्या प्रभाव पड़ता है, पुरुष सांसारिक बन्धनों में क्यों फँस जाता है। सांख्य दर्शन ने भले ही प्रकृति और पुरुष को दो मौलिक सत्ताओं के रूप में भले ही बताने का प्रयास किया है परन्तु पुरुष और प्रकृति के स्वतन्त्र अस्तित्व का तर्क सार्थक प्रतीत नहीं होता।68
(2) सांख्य दर्शन में विकासवाद का सिद्धान्त सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता तथा सृष्टिवाद का खण्डन करता है क्योंकि ईश्वर को संसार का सृष्टिकर्ता माना जाता है। सांख्य दर्शन का विकासवाद का सिद्धान्त सम्पूर्ण रूप से तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक नहीं है। विकासवाद के अनुसार, प्रकृति और पुरुष के संयोग से ही संसार का निर्माण होता है क्योंकि संसार का निर्माण प्रकृति और पुरुष के संयोग से होता है परन्तु यह प्रश्न विचारणीय है। निष्क्रिय पुरुष किस प्रकार प्रकृति की ओर आकर्षित होता है। इसका उत्तर सांख्य दर्शन उपमा के रूप में देता है। जैसे अन्धे और लंगड़े का सम्बन्ध, लोहे और चुम्बक का सम्बन्ध, जिस प्रकार चुम्बक की ओर लोहा स्वयं ही खींचा चला आता है उसी प्रकार पुरुष की ओर प्रकृति चली आती है। परन्तु जब पुरुष निष्क्रिय है तथा शुद्ध चेतन रूप है तो प्रकृति से उसका सहयोग कैसे हो सकता है।
(3) सांख्य दर्शन में वास्तववाद सांख्य दर्शन संसार को वास्तविक मानता है क्योंकि उसका निर्माण प्रकृति और पुरुष के संयोग से हुआ है। ये जो दो मौलिक सत्ताएँ हैं उनके संयोग से ही संसार का निर्माण होता है। प्रकृति निमित्त कारण के रूप में कार्य करती है। प्रकृति से चौबीस पदार्थों का विकास होता है जिससे स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर का विकास होता है। सांख्य दर्शन पुरुष को भी वास्तविक मानता है। पुरुष वास्तविक है, सत्य है और अनेक है जितने जीव हैं उतने पुरुष हैं, जीव भी वास्तविक है। अतः वास्तववादी दृष्टिकोण के सांख्य दर्शन में वास्तववाद की भी भूमिका देखने को मिलती है।
(4) सांख्य दर्शन में अनीश्वरवाद सांख्य दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को लेकर विवाद पाया जाता है। सांख्य दर्शन का एक दल ईश्वर के अस्तित्व को मानता है तथा दूसरा दल इसका खण्डन करता है। इस दल को अनीश्वरवाद कहा जाता है।
ईश्वरवाद को मानने वाले ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं। सांख्य दर्शन में अनीश्वरवादी होने के मुख्य कारण इसका विकासवाद के सिद्धान्त को मानना है। विकासवाद के सिद्धान्त में सृष्टिकर्ता की आवश्यकता नहीं है इसलिए सांख्य दर्शन में अगर ईश्वर नहीं है तो वे एक सृष्टिकर्त्ता के रूप में बौद्धिक नहीं है अन्यथा एक व्यवस्थापक ईश्वर के रूप में तो जरूरत है ही। ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने के लिए ईश्वर की सृष्टि में विकास होना भी आवश्यक है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
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- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
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- प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
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- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
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- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
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- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?